Pooja Vidhi Prarambh
ॐ जय! जय! जय! |
नमोऽस्तु! नमोऽस्तु! नमोऽस्तु!|
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं |
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ||
ॐ ह्रीं अनादिमूलमंत्रेभ्यो नमः |
पुष्पांजलि अर्पित करें
चत्तारि मंगलं अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं,
साहू मंगलं, केवलपण्णत्तो धम्मो मंगलं |
चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा,
साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो |
चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरिहंते सरणं पव्वज्जामि,
सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहू सरणं पव्वज्जामि,
केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि ||
ॐ नमोऽर्हते स्वाहा |
पुष्पांजलि अर्पित करें
अपवित्रः पवित्रो वा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा |
ध्यायेत्पंच-नमस्कारं सर्वपापैः प्रमुच्यते |1|
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा |
यः स्मरेत्परमात्मानं स बाह्याभ्यंतरे शुचिः |2|
अपराजित-मंत्रोऽयं, सर्व-विघ्न-विनाशनः |
मंगलेषु च सर्वेषु, प्रथमं मंगलमं मतः |3|
एसो पंच-णमोयारो, सव्व-पावप्पणासणो |
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम् |4|
अर्हमित्यक्षरं ब्रह्म, वाचकं परमेष्ठिनः |
सिद्धचक्रस्य सद्बीजं सर्वतः प्रणमाम्यहम् |5|
कर्माष्टक-विनिर्मुक्तं मोक्ष-लक्ष्मी-निकेतनम् |
सम्यक्त्वादि-गुणोपेतं सिद्धचक्रं नमाम्यहम् |6|
विघ्नौघाः प्रलयं यान्ति, शाकिनी भूत पन्नगाः |
विषं निर्विषतां याति स्तूयमाने जिनेश्वरे |7|
पुष्पांजलि अर्पित करें
यह जैन धर्म की प्रारंभिक पूजा (मंगलाचरण) है। इसमें नमस्कार मंत्र, चत्तारि मंगलं, शुद्धिकरण श्लोक, अपराजित मंत्र और सिद्धचक्र स्तुति शामिल हैं। यह कोई विशेष देव-पूजा नहीं, बल्कि सर्वसामान्य आरंभिक भक्ति है। हर मंत्र के बाद “पुष्पांजलि अर्पित करें” लिखा है, जिसका अर्थ है फूल (Chawal) अर्पित करना।
यह पूजा शुरू करने से पहले मन और वातावरण को शुद्ध करने के लिए की जाती है। पाँच परमेष्ठियों (अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु) को नमन और स्मरण करने के लिए इसका पाठ किया जाता है। जीवन से विघ्न, पाप और अशुद्धियाँ दूर करने तथा साधक को शांति, शुभ मंगल और मोक्षमार्ग पर स्थिरता देने के उद्देश्य से इसे किया जाता है।
सरल शब्दों में, यह पूजा शुद्धि, मंगलकामना और भक्ति के लिए की जाती है।