Category: Stotra & Stuti
Alochana Path
दोहा बंदों पाँचों परम-गुरु, चौबीसों जिनराज। करूँ शुद्ध आलोचना, शुद्धिकरन के काज ॥ सखी छंद सुनिए, जिन अरज हमारी, हम दोष किए अति भारी। तिनकी अब निवृत्ति काज, तुम सरन लही जिनराज ॥ इक बे ते चउ इंद्री वा, मनरहित सहित जे जीवा। तिनकी नहिं करुणा धारी, निरदई ह्वै घात विचारी ॥ समारंभ समारंभ आरंभ, […]