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Sep
Panch Parmesthi: The Most Revered in Jainism
जैन धर्म में पंच परमेष्ठी को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। परमेष्ठी का अर्थ है – “परम पूज्य” अर्थात जिनकी पूजा से आत्मा शुद्ध होती है और जिनके चरणों में समर्पण से मोक्ष मार्ग सुलभ होता है।
पंच परमेष्ठी कौन हैं?
- अरिहंत (Arihant) : अरिहंत वे होते हैं जिन्होंने चारों घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त किया हो। वे जीवित रहते हुए भी संसार से पूरी तरह अलिप्त रहते हैं। जब कोई अरिहंत तीर्थ स्थापन करता है तो वह तीर्थंकर कहलाता है।
- सिद्ध (Siddha) : सिद्ध वे आत्माएँ हैं जिन्होंने जन्म–मरण के बंधन से मुक्ति पा ली है। वे कर्मरहित, शुद्ध, अमर और अनंत सुखस्वरूप हैं। सिद्ध आत्माएँ सिद्धशिला पर विराजमान रहती हैं।
- आचार्य (Acharya) : आचार्य साधु-संघ के प्रमुख होते हैं। वे साधुओं को नियम और अनुशासन में रखते हैं तथा धर्म की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं। आचार्य का जीवन अनुकरणीय होता है।
- उपाध्याय (Upadhyaya) : उपाध्याय वे गुरु हैं जो शास्त्रों का गहन अध्ययन करते हैं और दूसरों को भी उसका उपदेश देते हैं। वे आध्यात्मिक शिक्षा और ज्ञान का प्रसार करते हैं।
- साधु (Sadhu / Muni) : साधु वे होते हैं जिन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग कर संयम, तप और साधना का मार्ग अपनाया है। वे मोक्षमार्ग के यात्री होते हैं।
इन पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार करने वाला मंत्र णमोकार मंत्र (नवकार मंत्र) कहलाता है, जो जैन धर्म का सबसे महान और प्राचीन मंत्र है। इसमें किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं आता, केवल गुणों की वंदना की जाती है।
पंच परमेष्ठी मंत्र – नवकार मंत्र
- नमो अरिहंताणं
- नमो सिद्धाणं
- नमो आयरियाणं
- नमो उवज्झायाणं
- नमो लोए सव्व साहूणं।
अर्थ – मैं अरिहंतों को नमस्कार करता हूँ, सिद्धों को नमस्कार करता हूँ, आचार्यों को नमस्कार करता हूँ, उपाध्यायों को नमस्कार करता हूँ और सभी साधुओं को नमस्कार करता हूँ।
महत्व
- पंच परमेष्ठी की पूजा से आत्मा के पाप क्षीण होते हैं।
- यह मंत्र किसी भी विशेष जाति, व्यक्ति या काल से बंधा नहीं है, बल्कि सर्वकालिक और सार्वभौमिक है।
- पंच परमेष्ठी हमें यह शिक्षा देते हैं कि हम भी संयम, तप और ज्ञान द्वारा मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
इस प्रकार पंच परमेष्ठी जैन धर्म का आध्यात्मिक स्तंभ हैं और उनकी वंदना से साधक आत्मशुद्धि और मुक्ति मार्ग की ओर अग्रसर होता है।