Shree Adinath Bhagwan Argh
शुचि निर्मल नीरं गंध सुअक्षत, पुष्प चरु ले मन हरषाय |
दीप धुप फल अर्घ सु लेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय ||
श्री आदिनाथ के चरण कमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव दुःख मेटो, या तैं मैं पूजूं प्रभु पाय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ||
पंचकल्याणकार्घ
सर्वारथसिधि तैं चये, मरूदेवी उर आय |
दोज असित आषाढ़ की, जजूं तिहारे पाय ||
ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णद्वितीयायां गर्भकल्याणप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
चैतवदी नौमी दिना, जन्म्याँ श्री भगवान |
सुरपति उत्सव अति करा, मैं पूजौं धरि ध्यान ||
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णनवम्यां जैमकल्याणप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
फाल्गुन वदि एकादशी, उपज्यो केवलज्ञान |
इंद्र आय पूजा करी, मैं पूजों इह थान ||
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
माघ चतुर्दशी कृष्ण की, मोक्ष गये भगवान |
भवि जीवों को बोधि के, पहुंचे शिवपुर थान ||
ॐ ह्रीं माघकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणप्राप्तय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।