Shree Adinath Bhagwan Pujan
नाभिराय मरूदेवी के नंदन, आदिनाथ स्वामी महाराज
सर्वार्थसिद्धि तैं आप पधारे, मध्य लोक माँहि जिनराज |
इंद्रदेव सब मिलकर आये, जन्म महोत्सव करने काज
आह्वानन अब विधि मिल करके, अपने कर पूजें प्रभु पायं ||
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट |
(अष्टक)
क्षीरोदधि को उज्ज्वल जल ले, श्री जिनवर पद पूजन जाय |
जन्म जरा दुःख मेट कारन, ल्याय चढ़ाऊँ प्रभु के पांय ||
श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
हे करुणानिधि भव दुःख मेटो, यातैं मैं पूजों प्रभु पांय ||
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
मलयगिरी चन्दन दाहहनिकंदन, कंचन भारी में भर लाल्य |
श्रीजी के चरण चढावो भविजन, भव आतप तुरत मिट जाय ||
श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
शुभशालि अखंडित सौरभ मंडित, प्रासुक जल सौं धो कर ल्याय |
श्रीजी के चरण चढावो भविजन, अक्षयपद को तुरत पाय ||
श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा ।
कमल केतकी बेल चमेली, श्री गुलाब के पुष्प मंगाय |
श्रीजी के चरण चढावो भविजन, कामबाण तुरत हि नस जाय ||
श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पानि निर्वपामीति स्वाहा ।
नेवज लीना षट-रस भीना, श्री जिनवर आगे धरवाय |
थाल भराऊँ क्षुधा नसाऊँ, जिन गुण गावत मन हरषाय ||
श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवैद्यम निर्वपामीति स्वाहा ।
जगमग जगमग होत दशों दिश, ज्योति रही मन्दिर में छाय |
श्री जी के सन्मुख करत आरती, मोहतिमिर नासै दुःखदाय ||
श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
अगर कपूर सुगंध मनोहर चन्दन कूट सुगंध मिलाय |
श्री जी के सन्मुख खेय धूपायन, कर्म जरे चहूँगति मिट जाय ||
श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
श्रीफल और सुपारी, केला आदि छुहारा ल्याय |
महामोक्षफल पावन कारन, ल्याय चढ़ाऊँ प्रभु के पाय ||
श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
शुचि निर्मल नीरं गंध सुअक्षत, पुष्प चरु के मन हरषाय |
दीप धूप अर्घ सुलेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय ||
श्री आदिनाथ के चरणकमल पर, बलि-बलि जाऊं मन-वच-काय |
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
(पंचकल्याणकार्घ)
सर्वारथसिधि तैं चये, मरूदेवी उर आय |
दोज असित आषाढ़ की, जजूं तिहारे पाय ||
ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णद्वितीयायां गर्भकल्याणप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
चैतवदी नौमी दिना, जन्म्याँ श्री भगवान |
सुरपति उत्सव अति करा, मैं पूजौं धरि ध्यान ||
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णनवम्यां जैमकल्याणप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
फाल्गुन वदि एकादशी, उपज्यो केवलज्ञान |
इंद्र आय पूजा करी, मैं पूजों इह थान ||
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
माघ चतुर्दशी कृष्ण की, मोक्ष गये भगवान |
भवि जीवों को बोधि के, पहुंचे शिवपुर थान ||
ॐ ह्रीं माघकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षकल्याणप्राप्तय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
(जयमाला)
आदीश्वर मैं विनती तुमसे करूं |
चारों गति के माहीं मैं दुःख पायो सो सुनो ||
अष्ट कर्म में एकलो, यह दुष्ट महादुःख देत हो |
कबहूँ इतर निगोद में मोकूँ, पटकत करत अचेत हो || म्हारी दीनतनी सुन विनती ||
प्रभु कबहूँ पटक्यो नरक में, जठे जीव महादुःख पाय हो |
निष्ठुर निर्दयी नारकी, जठे करत परस्पर घात हो |
कोईयक बांध्यो खंभस्यो, पापी दे मुदगर की मार हो || म्हारी…
कोईयक काटें करोत सों, पापी अंगतनी दोयफाड़ हो |
प्रभु यह विनती दुःख भुगत्या घणा, फिर गति पाई तिर्यंच हो || म्हारी…
हिरण बकरा बाछला, पशु दीन गरीब अनाथ हो |
प्रभु मैं ऊंट बलद भैंसा भयो, जापें लादियो भर अपार हो || म्हारी…
नहिं चल्यो जब गीत परयो, पापी दे सोटन की मार हो |
प्रभु कोईयक पुण्य संजोग सूं, मैं तो पायो स्वर्ग निवास हो || म्हारी…
देवांगना संग रमि रह्यो जठे भोगनि को परताप हो |
प्रभु संग अप्सरा रमि रह्यो, कर कर अति अनुराग हो | म्हारी…
कबहुँक नंदनवन विशैं प्रभु, कबहुँक वनगृह मांही हो |
प्रभु यह विधिकाल गमाय कें, फिर माला गई मुरझाय हो | म्हारी…
देव थिती सब घट गई, फिर सोच उपज्यो अपार हो |
सोच करत तन खिर पड्यो, फिर उपज्यो गरभ में जाय | म्हारी…
प्रभु गर्भतणा दुःख अब कहूं, जठै सकुडाई की ठौर हो |
हलन चलन नहिं कर सक्यो, जठै सघन कीच घनघोर हो || म्हारी…
माता खावै चरपरो, फिर लागै तन संताप हो ||
प्रभु जो जननी तातो भखे, फिर उपजै तन संताप हो || म्हारी…
औंधे मुख झुल्यो रह्यो, फेर निकसन कौन उपाय हो |
कठिन-कठिन क्र नीसर्यो, जैसे निसरै जंत्री में तार हो || म्हारी…
प्रभु फिर निकसत ही धरत्याँ पड्यो, फिर लागी भूख अप्पर हो |
रोय-रोय बिल्ख्यो घणों, दुःख वेदन को नहि पार हो || म्हारी…
प्रभु दुःख मेटन समरथ धनी यातैं लागूं तिहारे पायं हो |
सेवक अरज करे मोकूँ, भवदधि पार उतार हो || म्हारी…
ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये महार्घ्य्म निर्वपामीति स्वाहा ।
(दोहा)
श्रीजी की महिमा अगम है, कोई न पावै पार |
मैं मति अल्प अज्ञान हूँ, कौन करै विस्तार ||
विनती ऋषभ जिनेश की, जो पढ़सी मन ल्याय |
सुरगों में संशय नहीं, निहचै शिवपुर जाय ||
इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलीं क्षिपेत