Shri Pushpdant Ji Argh
जल फल सकल मिलाय मनोहर, मनवचतन हुलसाय ।
तुम पद पूजौं प्रीति लाय के, जय जय त्रिभुवनराय ।।
मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय, मेरी अरज सनीजे ।।
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।13।
पंचकल्याणक अर्घ्य
नवमी फागुन वदी सुहाई, गर्भ कल्याण भयो सुखदाई ।
सेवे मात देवि सुखकारी, पूजूं जिनवर मंगलकारी ॥
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णनवम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा
मगसिर सुदि एक दिन आया, इन्द्र जन्मकल्याण मनाया। उत्सव नाना भाँति रचाई, मैं भी पूजूं त्रिभुवन राई ।
ॐ ह्रीं माघशुक्लप्रतिपदायां जन्ममंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा ।
इक दिन उल्कापात हुआ था, अन्तर में वैराग्य हुआ था।
भाव भावना दीक्षा धारी, मगसिर सुदि एकम् सुखकारी ॥
ॐ ह्रीं माघशुक्लप्रतिपदायां तपोमंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा।
आत्मध्यान प्रभु ऐसा धारा, नाशे घाति कर्म दुखकारा ।
कार्तिक कृष्णा द्वितीया स्वामी, धर्मतीर्थ प्रकटा अभिरामी ॥
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णद्वितीयायां ज्ञानमंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा।
सुप्रभ टोंक सम्मेद महाना, आप पधारे अविचल थाना ।
भादों सुदि अष्टमि सुखकारा, पूजत होवे हर्ष अपारा।।
ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्ल अष्टम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्री पुष्पदंतजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा ।