Shri Vimalnath Ji Argh
आठों दरब संवार, मनसुखदायक पावने ।
जजौं अरघ भर थार, विमल विमल शिवतिय रमण ।।
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
गर्भागम मंगल गाये, नभ से सु रतन वर्षाये।
कलि जेठ सु दशमी जानो, प्रभु पूजत चित हुलसानो ।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठ कृष्णदशम्यां गर्भमंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सुदि माघ चतुर्थी आई, जन्मे जिन आनन्ददायी ।
भयो मेरु न्हवन सुखकारी, पूजत प्रभु पद अविकारी ।।
ॐ ह्रीं माघशुक्लचतुर्थ्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय – अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सुदि माघ चतुर्थी प्यारी, मुनिपद की दीक्षा धारी।
इन्द्रादिक उत्सव कीनो, सुनि आनन्द होय नवीनो ।।
ॐ ह्रीं माघशुक्लचतुर्थ्यां तपोमंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सुदि माघ छटी दिन आया, अरहंत परमपद पाया।
कैवल्यलक्ष्मी पाई, हमको शिव राह दिखाई ||
ॐ ह्रीं माघशुक्लषष्ठ्यां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय-अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कलि षाढ़ अष्टमी पावन, कर आवागमन निवारण।
निर्वाण महाफल पाया, हम पूजत शीश नवाया ।।
ॐ ह्रीं आषाढकृष्णषष्ठयां मोक्षमंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।